ABSTRACT:वर्तमान परिवर्तनषील परिवेष में सभी भारी संख्या में भौतिक पदार्थ एकत्र करने में जुटे है। तो क्या इन साधनों से सुख, शान्ति अथवा आनन्द प्राप्त होगा? सुखी व्यक्तियों के पास भौतिक सुख की वस्तुएं बहुत कम होती है क्योंकि वह बेकार की कोई भी चिन्ता नहीं पालते है। जीवन के आनंद का मूलाधार - जीवन को उपयोगी एवं स्वस्थ बनाना है, जीवन की सफलता में यौगिक क्रियाओं के साथ अन्य प्रक्रियायें भी सहायक सिद्ध होती है। व्यक्ति के सुफल व सुकार्य मानव के चरित्र को आकार देने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाते है। सद्विचारों और सत्कर्मों की एकरूपता को ही चरित्र कहते हैं। जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हंैं उन्हीं को चरित्रवान कहा जाता है। चरित्र सदाचार में, संयम वह इच्छाषक्ति है, जो चरित्र की सम्पत्ति को बढ़ाती है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, षिष्टाचार, सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग है, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित व्यवस्थित जीवन, षांत- गंभीर मनोभूमि चरित्र के परोक्ष अंग हैं। आपके विचार इच्छाएँ, आकांक्षाओं के अनुरूप ही आपके चरित्र का गठन होता है, चरित्र के अनुरूप ही आपके आसपास का वातावरण बनता है, जो सही दिषा को प्रेरित करता है उच्च चरित्र पर ही मानव जीवन की उत्कृष्ट नींव बनती है । यौगिक जीवन षैली से षारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को जड़ से मजबूती मिलती है, जीवन का वास्तविक लक्ष्य देखने, ठीक से पहचानने में मदद करता हैं एवं निम्न स्तर से उठाकर उच्चतर स्थिति में ले जाता है । मानव जीवन को उच्च स्थिति तक लाने में यौगिक क्रियाओं के अभ्यास चित्त षुद्धि पर विषेष ध्यान देते है, क्योंकि चित्त षुद्ध के बिना ज्ञान नहीं प्राप्त होता है। एआई के समय में ज्ञान वह साधना है जो विचार और चिन्तन के लिए प्रेरित करता है, युवाओं को किताब की पढाई एवं यान्त्रिक उपयोग के साथ ज्ञान का दायरा भी बढ़ाना है।