2024, Vol. 9 Issue 2, Part E
भ्रामरी प्राणायाम का स्वास्थ्य संवर्धन में महत्व : शास्त्रोक्त अध्ययन
AUTHOR(S): गौरव वोहरा, डॉ. विकेश कामरा
ABSTRACT:
हठयोग के महत्वपूर्ण ग्रंथ हठप्रदीपिका में भ्रामरी प्राणायाम का उपदेश किया गया है। भ्रामरी का अर्थ हुआ भँवरे का-सा गुंजन करना। इस प्राणायाम में रेचक करते समय भ्रमर के समान गुंजन की आवाज निकलती है। इसलिए इस प्राणायाम को 'भ्रामरी' कहते हैं। भ्रामरी प्राणायाम का विधिपूर्वक नियमित रूप से अभ्यास करने से मन की चंचलता दूर होती है। इस प्राणायाम का अभ्यास करने से वाणी तथा स्वर में मधुरता और सुरीलापन आने लगता है, गले के रोग नष्ट हो जाते हैं और गले के अवयव सशक्त होते हैं। मानसिक तनाव, उत्तेजना, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग आदि में यह प्राणायाम लाभकारी प्रभाव रखता है। इसके अभ्यास से मस्तिष्क की क्षमता और कुशलता में अभिवृद्धि होती है जिससे स्मरण-शक्ति, कुशाग्रता, सूझबूझ, दूरदर्शिता, सूक्ष्म निरीक्षण, धारणा, प्रज्ञा, मेधा आदि मानसिक विशेषताओं का अभिवर्धन होता है। विशेष रूप से भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास ध्यान के लिए अभ्यासी साधक के लिए ध्यान की मजबूत पृष्ठभूमि तैयार करता है। इस प्राणायाम का अभ्यास करने से श्वसन क्रिया दीर्घ और गहरी होती है जिसके फलस्वरूप मनुष्य दीर्घायु बनता है। इस प्रकार साररूप में यह स्पष्ट होता है कि भ्रामरी प्राणायाम अभ्यास मनुष्य के स्वास्थ्य संवर्धन में अत्यंत विशिष्ट भूमिका वहन कर सकता है।
Pages: 284-286 | 66 Views 28 Downloads