Contact: +91-9711224068
International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences
  • Printed Journal
  • Indexed Journal
  • Refereed Journal
  • Peer Reviewed Journal
ISSN: 2456-4419

2017, Vol. 2 Issue 2, Part F

यौगिक ग्रंथों में प्रकृति का स्वरुप

AUTHOR(S): डाॅ. विरेन्द्र कुमार, मानव कुमार
ABSTRACT:
प्राचीनतम काल से ही हमारे ऋषियों, महर्षियों तथा मुनियों ने जीवन के सर्वोतम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया है ताकि इस मानव देह का उद्देश्य पुलकित हो सके और उस परम सत्ता । परमात्मा का आत्मसाक्षातकार हो सके उसके लिए योग। योगांगो को सर्वाेतम साधन एवं पद्धति बताया गया है ताकि मन। शरीर व आत्मा के तादम्यता को प्रतिष्ठित किया जा सके। इसके सन्दर्भ प्रकृति अहम् भूमिका निभाति है। प्रत्येक मनुष्य अपनी प्रकृति को भली - भाँति से जानकर व मनन कर अपने भौतिक स्तर व मानस स्तर को भली - भाँति प्रकार से समझ सकता है।
यह हमारे शारीरिक स्तर। मानसिक स्तर व आध्यात्मिक स्तर को प्रभावित करती है तथा जब तक इस देह में प्राण संचार उपस्थित रहता है प्रकृति का प्रभाव पूरे देह पर रहता है चाहे वह सूक्ष्म रुप से हो या उच्चतम स्तर पर प्रकृति का प्रभाव हो।
प्रकृति के द्वारा ही प्रत्येक मनुष्य का आहार-विहार, चिंतन मनन, शारीरिक ढाँचा, रहन - सहन तथा अन्य सभी पहलू सधनात्मक रुप से निर्देशित व संचालित होते हैं इन सभी पहलुओं को समझते हुए वैज्ञानिक व मनौविज्ञानिक तौर पर भी निरीक्षण किया जा सकता है। जिससे प्रकृति के स्वरुप, गुणों व विभिन्नओं को भली-भाँति प्रकार से समझा जा सके व योग साधना मार्ग पर चलने में सहायक सिद्ध हो सके ताकि परम उद्देश्य को प्राप्त करने में सुगमता हो सके। आज के नवयुग में प्रत्येक जन-मानस का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ इसका मुख्य कारण लोगों की दिनचर्या, रहन - सहन, आहार - विहार इत्यादि घटकों को बताया गया है जिसके परिणामस्वरुप आज विश्व नई - नई व्याधियों का सामना कर रहा है।
इसके लिए निरन्तर प्रयास भी जारी किए जा रहे हैं लेकिन पूर्णतया सफलता हासिल नहीं हुई है कहीं ना कहीं आज इतनी वैज्ञानिकता व आधुनिकता के कारण भी समाज असहाय महसूस करता है लेकिन एक तथ्यों को ध्यान में रखकर इन समस्याओं का निवारण किया जा सकता है।
प्रत्येक मनुष्य इस धरा धरती पर जन्म लेता है तो वह अपने शरीर के साथ प्रकृति को भी साथ लेकर पैदा होता है अर्थात प्रत्येक मनुष्य (सत्तोगुण, रजोगुण, तमोगुण) प्रकृति का सम्मिलित होता है उसमें सत्व, तम की प्रधानता, कमी, सत्तोगुण की प्रधानता भी हो सकती है।
यह सब प्रत्येक मनुष्य का व्यवहार आहार-विहार, क्रिया-कलापों व चेतनता का स्तर इत्यादि संबंधित घटकों को प्रदर्शित करता है तथा पूरी उम्र तक प्रकृति का चक्र चलता रहता है तथा व्यक्ति प्रभावित होता रहता है।
Pages: 305-307  |  911 Views  7 Downloads
How to cite this article:
डाॅ. विरेन्द्र कुमार, मानव कुमार. यौगिक ग्रंथों में प्रकृति का स्वरुप. Int J Yogic Hum Mov Sports Sciences 2017;2(2):305-307.
Important Publications Links
International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences

International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences

Call for book chapter
International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences