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International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences
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ISSN: 2456-4419

2017, Vol. 2 Issue 2, Part F

यौगिक ग्रंथों मे मन का स्वरुप व निग्रह उपाय

AUTHOR(S): डाॅ. विरेन्द्र कुमार, हरिष
ABSTRACT:
इस मनुष्य देह का मुख्य उद्देश्य मोक्ष (कैवल्य) की प्राप्ति है। इसी मोक्ष व कैवल्य प्राप्ति के लिए हमारे ऋड्ढियों - मुनियों ने पुरुड्ढार्थ चतुष्ठय (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) इन चारों की प्राप्ति के लिए आश्रम - व्यवस्था बनाई। इस व्यवस्था से भी यही स्पष्ट होता है कि मानव जन्म का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति । यह प्राप्ति कैसे हो इसके लिए हमें योग साधना को अपनाना या करना पडेगा। इसके द्वारा ही इस विशुद्ध सत्म की प्राप्ति सम्भव है।
लेकिन यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए हमें योग साधना के पथ पर अग्रसर होना पड़ेगा। योग साधना या इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए हमें आवश्यक है दृढ़ संकल्प, दृढ इच्छा शक्ति व स्थिरता की। जो केवल और केवल मन के योगस्थ होने पर ही संभव है।
लेकिन हम केवल शरीर व बाह्य सौंदर्य, शुद्धि व सफाई की बात करते है इस शरीर से भी बलवान, मूल्यवान मन की नहीं। जिसकी अशुद्धियाँ हमारे आत्मसाक्षात्कार के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। क्योंकि मन कामनाओं, विचारों, भावनाओं और आवेगों का एक गट्ठर है जिसमें जन्म-जन्मातर के संस्कार दबें पड़े हैं। इन संस्कारों को मिटाना है तो हमें (चित्त) मन की चंचलता को दूर करना होगा।
क्योंकि मन की चंचलता ही मन में शब्द, रुप, रस, गंध और विड्ढयों को उठाती है। इनसे ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेड्ढ आदि भावदशा बनती हैं इन भावदशाओं को ही वृति कहते हैं। जब ये वृतियां रुक जाती हैं तो उस अवस्था को योग कहते हैं। कहने का भाव है कि मन(चित्त)वृतियों के रुक जाने पर आत्मा अपने स्वरुप में ठहर जाती है। व समाधि अवस्था या मोक्ष प्राप्ति हो जाती है।
अब प्रश्न है कि यह मन(चित्त) क्या है इसका क्या अर्थ है, स्थान, लक्षण व गुण, उत्पत्ति, स्वरुप, कार्य व नियंत्रण के उपाय कौन से हैं। इन प्रश्नों के उत्तर जानना अंतत आवश्यक हो गया है।
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How to cite this article:
डाॅ. विरेन्द्र कुमार, हरिष. यौगिक ग्रंथों मे मन का स्वरुप व निग्रह उपाय. Int J Yogic Hum Mov Sports Sciences 2017;2(2):302-304.
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