2017, Vol. 2 Issue 2, Part D
सूर साहितà¥à¤¯ में कावà¥à¤¯ सौंदय
AUTHOR(S): डाॅ0 जयराम तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤ ी
ABSTRACT:
वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ शंृगार के समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ महाकवि सूरदास ने कृषà¥à¤£ को आराधà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ ईवशà¥à¤° मानते हà¥à¤ अपने सूरसागर में कावà¥à¤¯ सौंदरà¥à¤¯ का वरà¥à¤£à¤¨ कà¥à¤› इस महतॠरà¥à¤ª में किया है कि पाठक आलोचक उसकी रस की मातà¥à¤°à¤¾ का आकलन करने में अपने आप को असमरà¥à¤¥ पाता है। सूरदास ने कृषà¥à¤£ को ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ मानते हà¥à¤ à¤à¥€ उनका चितà¥à¤°à¤£ à¤à¤• सामानà¥à¤¯ गृहसà¥à¤¥ के यहाठपलने वाले बालक की तरह किया है। वे नंद के लालन-पालन के साथ-साथ जन सामानà¥à¤¯ की तरह जीवन के सà¤à¥€ छोटे-बड़े कारà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ करते चलते हैं। सूरसागर में हम यह पाते हैं कि राजा और पà¥à¤°à¤œà¤¾ के बीच बहà¥à¤¤ अधिक अंतर नहीं है। सूर के कावà¥à¤¯ में मà¥à¤–à¥à¤¯ रà¥à¤ª से तीन रसों का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ हà¥à¤† है शांत रस के अंतरगत à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का, शंृगार का और वतà¥à¤¸à¤² का। सूरदास के सà¤à¥€ पद गेय हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इनकी रचना गाने के लिठही की गई थी।
Pages: 184-185 | 3167 Views 1807 Downloads
How to cite this article:
डाॅ0 जयराम तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¾à¤ ी. सूर साहितà¥à¤¯ में कावà¥à¤¯ सौंदय. Int J Yogic Hum Mov Sports Sciences 2017;2(2):184-185.