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International Journal of Yogic, Human Movement and Sports Sciences
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ISSN: 2456-4419
Peer Reviewed Journal

2017, Vol. 2 Issue 2, Part D

सूर साहित्य में काव्य सौंदय

AUTHOR(S): डाॅ0 जयराम त्रिपाठी
ABSTRACT:
वात्सल्य एवं शंृगार के सम्राट महाकवि सूरदास ने कृष्ण को आराध्य एवं ईवश्र मानते हुए अपने सूरसागर में काव्य सौंदर्य का वर्णन कुछ इस महत् रुप में किया है कि पाठक आलोचक उसकी रस की मात्रा का आकलन करने में अपने आप को असमर्थ पाता है। सूरदास ने कृष्ण को ईश्वरीय गुणों से युक्त मानते हुए भी उनका चित्रण एक सामान्य गृहस्थ के यहाँ पलने वाले बालक की तरह किया है। वे नंद के लालन-पालन के साथ-साथ जन सामान्य की तरह जीवन के सभी छोटे-बड़े कार्य स्वयं करते चलते हैं। सूरसागर में हम यह पाते हैं कि राजा और प्रजा के बीच बहुत अधिक अंतर नहीं है। सूर के काव्य में मुख्य रुप से तीन रसों का प्रतिपादन हुआ है शांत रस के अंतरगत भक्ति का, शंृगार का और वत्सल का। सूरदास के सभी पद गेय हैं क्योंकि इनकी रचना गाने के लिए ही की गई थी।
Pages: 184-185  |  3597 Views  2151 Downloads


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How to cite this article:
डाॅ0 जयराम त्रिपाठी. सूर साहित्य में काव्य सौंदय. Int J Yogic Hum Mov Sports Sciences 2017;2(2):184-185.
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